Tuesday, March 17, 2015

News : सुप्रीम कोर्ट ने जाट आरक्षण को किया रद्द, कहा- जाटों को ओबीसी सूची में शामिल करना उचित नहीं

News : सुप्रीम कोर्ट ने जाट आरक्षण को किया रद्द, कहा- जाटों को ओबीसी सूची में शामिल करना उचित नहीं
जाटलैंड में तूफान से पहले का सन्नाटा
कुल मिलाकर कुल जनसंख्या का करीब 25 फीसदी हिस्सा रखने वाला जाट समुदाय एक साथ कई विकल्पों की उधेड़-बुन में जुटा हुआ है

नई दिल्‍ली : सुप्रीम कोर्ट ने जाटों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण कोटे में शामिल करने के लिए पूर्व यूपीए सरकार द्वारा जारी की गई अधिसूचना को मंगलवार को निरस्त कर दिया। इस फैसले से अब 9 राज्‍यों में जाटों को आरक्षण नहीं मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जाट जैसी राजनीतिक रूप से संगठित जातियों को ओबीसी सूची में शामिल करना अन्य पिछड़े वर्गों के लिए सही नहीं है। न्यायालय ने ओबीसी पैनल के उस निष्कर्ष पर ध्यान नहीं देने के केंद्र के फैसले में खामी पाई जिसमें कहा गया था कि जाट पिछड़ी जाति नहीं है। गौर हो कि लोकसभा चुनाव से पहले यूपीए सरकार ने जाट आरक्षण पर अधिसूचना जारी की थी। दिल्‍ली, हरियाणा, हिमाचल, उत्‍तराखंड, बिहार, गुजरात समेत 9 राज्‍यों में आरक्षण को लेकर अधिसूचना जारी की गई थी।

न्यायमूर्ति तरूण गोगोई और न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन की पीठ ने कहा कि हम केंद्र की अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की सूची में जाटों को शामिल करने की अधिसूचना निरस्त करते हैं। पीठ ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के उस निष्कर्ष की अनदेखी करने के केंद्र के फैसले में खामी पाई जिसमें कहा गया था कि जाट केंद्र की ओबीसी सूची में शामिल होने के हकदार नहीं हैं क्योंकि वे सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग नहीं हैं।

इसने ओबीसी आरक्षण पर मंडल आयोग की सिफारिशों के कार्यान्वयन पर वृहद पीठ के निर्णय का हवाला दिया और कहा कि जाति यद्यपि एक प्रमुख कारक है, लेकिन यह किसी वर्ग के पिछड़ेपन का निर्धारण करने का एकमात्र कारक नहीं हो सकती। पीठ ने यह भी कहा कि अतीत में ओबीसी सूची में किसी जाति को संभावित तौर पर गलत रूप से शामिल किया जाना दूसरी जातियों को गलत रूप से शामिल करने का आधार नहीं हो सकता। न्यायालय ने यह भी कहा कि जाट जैसे राजनीतिक रूप से संगठित वर्ग को शामिल किए जाने से दूसरे पिछड़े वर्गों के कल्याण पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। पीठ ने यह भी कहा कि हालांकि भारत सरकार को संवैधानिक योजना के तहत किसी खास वर्ग को आरक्षण उपलब्ध कराने की शक्ति प्राप्त है, लेकिन उसे जाति के पिछड़ेपन के बारे में दशकों पुराने निष्कर्ष के आधार पर ऐसा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

यह फैसला ‘ओबीसी रिजर्वेशन रक्षा समिति’ द्वारा दायर जनहित याचिका पर आया है। इस समिति में केंद्र की पिछड़ा वर्ग सूची में शामिल समुदायों के सदस्य शामिल हैं। याचिका में आरोप लगाया गया था कि चार मार्च की अधिूसचना तत्कालीन केंद्र सरकार ने लोकसभा चुनावों के लिए आदर्श आचार संहिता लागू होने से एक दिन पहले जारी की थी, ताकि तत्कालीन सत्तारूढ़ पार्टी को वोट जुटाने में मदद मिल सके। शीर्ष अदालत ने एक अप्रैल को केंद्र से पूछा था कि उसने जाट समुदाय को आरक्षण के लाभों से दूर रखने के लिए राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीएसी) की सलाह की कथित अनदेखी क्यों की। न्यायालय ने यह भी कहा था कि मामला ‘गंभीर’ है और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय को निर्देश दिया था कि वह इसके समक्ष फैसले से संबंधित सभी सामग्री, रिकॉर्ड और फाइलें रखे, जिससे कि यह देखा जा सके कि चार मार्च को अधिसूचना जारी करते समय ‘सरकार ने दिमाग लगाया था या नहीं।’

वर्तमान राजग सरकार ने जाट समुदाय को केंद्र की ओबीसी सूची में शामिल करने के यूपीए सरकार के फैसले का पिछले साल अगस्त में उच्चतम न्यायालय में समर्थन किया था। इसने कहा था कि मंत्रिमंडल ने फैसला करने से पहले भारतीय सामाजिक विज्ञान एवं अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर) की ओर से गठित एक विशेषज्ञ समिति के निष्कषरें का संज्ञान लिया । इसने कहा था कि सरकार ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के नजरिए को खारिज किया और विशेषज्ञ समिति के निष्कषरें के आधार पर फैसला किया। न्यायालय ने जनहित याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया था और इसके अनुपालन में हलफनामा दायर किया गया। संगठन के अतिरिक्त अन्य पिछड़ा वर्ग से ताल्लुक रखने वाले दिल्ली निवासी तीन अन्य व्यक्तियों राम सिंह, अशोक कुमार और अशोक यादव ने भी केंद्र की अधिसूचना को चुनौती दी है।

उन्होंने कहा कि जाट समुदाय के लोगों ने अन्य वर्गों के मुकाबले काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। याचिकाकर्ताओं ने यह व्यवस्था देने के लिए निर्देश दिए जाने का आग्रह किया है कि जाट समुदाय पिछड़ा वर्ग नहीं है और वह ओबीसी सूची में शामिल किए जाने का हकदार नहीं है तथा एनसीबीसी के निष्कर्षों को जोड़ने का भी आग्रह किया गया जिसने 26 फरवरी 2014 की रिपोर्ट में जाट समुदाय को केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल करने के केंद्र के आग्रह को खारिज कर दिया था।


News Sabhar : ज़ी मीडिया ब्‍यूरो
***********************************
जाटलैंड में तूफान से पहले का सन्नाटा

अजय गौतम, चंडीगढ़ जाटलैंड हरियाणा, सुप्रीम कोर्ट से मिले झटके पर फिलहाल मौन है लेकिन, गांव की चौपालों पर तेज होती हुक्कों की गुड़गुड़ाहट एक बड़ी बेचैनी की कहानी बयां कर रही है। आपस में सिर जोड़कर बतिया रहे बुजुर्गों व युवाओं में एक सोच नए सिरे से जंग शुरू करने की बनती दिख रही है वहीं सियासतदां अदालती फैसले को पढ़ने के बाद ही कोई टिप्पणी कर वेट एंड वॉच की लाइन पकड़ चुके हैं। कुल मिलाकर कुल जनसंख्या का करीब 25 फीसदी हिस्सा रखने वाला जाट समुदाय एक साथ कई विकल्पों की उधेड़-बुन में जुटा हुआ है।
हरियाणा का जाट समुदाय अब तक ओबीसी कोटे में आरक्षण मिलने पर इत्मीनान में था लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले से वह हिल गया है। जाट राजनीति करवट लेने को आतुर दिख रही है।

हरियाणा के जाट समुदाय ने लंबी लड़ाई और तीन शहादतों के बाद केंद्र में यूपीए के शासनकाल के अंतिम दिनों में ओबीसी कोटे में आरक्षण हासिल कर लिया था। प्रदेश की सियासत को अपनी धुरी पर घुमाने वाला यह वर्ग इससे पहले राज्य में भी पांच जातियों के साथ 10 फीसदी का आरक्षण लाभ हासिल करने में कामयाब रहा। खापों व संगठनों को यकीन हो गया था कि अब कहीं कोई रुकावट नहीं लेकिन, ओबीसी आरक्षण रक्षा समिति की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में डाली गई एक याचिका गले का फांस साबित हुई।

सुप्रीम कोर्ट ने इसी याचिका पर फैसला सुनाकर जाट समुदाय को बहुत बड़ा झटका दे दिया है। हरियाणा में यह फैसले जाट बाहुल्य इलाकों में अपना असर छोड़ चुका है और तुरंत ही इस पर गतिविधियां भी तेज होती दिखीं। जहां इस समुदाय का आम व्यक्ति फैसले पर नुक्ताचीनी में जुटा दिखाई दिया वहीं जाट नेता एकजुट होने की तैयारी में दिखाई दे रहे हैं।

बैठक में होगा मंथन इसी कड़ी में प्रदेश स्तरीय सर्व जाट खाप पंचायत 22 तारीख को जींद में बैठक करने जा रही है। जाट आरक्षण समिति के प्रधान हवा सिंह सांगवान ने कहा कि कोई भी रणनीति 22 तारीख को जींद की बैठक में तय होगी। इस बैठक में जाटों की विभिन्न खापों के नेता व संगठन शिरकत करेंगे। इससे पूर्व मंगलवार को कंडेला खाप के प्रधान व सर्वजातिय सर्वखाप महापंचायत के संयोजक टेकराम कंडेला की अध्यक्षता में जींद की जाट धर्मशाला में एक मीटिंग हुई। इसमें सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले पर मंथन हुआ। तय हुआ कि अगला कोई भी कदम 22 तारीख की मीटिंग के बाद उठाया जाएगा। बहरहाल, इस मीटिंग से यह संकेत मिला है कि अदालत के फैसले से जाट समुदाय फिर से न केवल इकट्ठा हो रहा है बल्कि उसके भीतर आंदोलन के साथ-साथ नए सिरे से कानूनी लड़ाई की सोच भी पनप रही है।

मिलकर लड़ेंगे बताया गया कि 22 तारीख की मीटिंग में यूपी, दिल्ली, पंजाब, राजस्थान राज्यों से भी जाट समुदाय के प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे। बैठक में यूपी 84 खाप पंचायत के प्रधान राकेश टिकैत, 360 दिल्ली पालम के प्रधान रामकरण सौलंकी, बलजीत सिंह पंजाब मुख्य रूप से मौजूद रहेंगे। मीटिंग के लिए अन्य जाट नेताओं को भी एक छत के नीचे आने के लिए बातचीत शुरू हो चुकी है।

इधर, इस बारे में कुछ जाट नेताओं का यह भी मत है कि किसी आंदोलन में सीधे उतरने की बजाए कानूनी लड़ाई का रास्ता अपना बेहतर रहेगा। इसी तरह दूसरा सुझाव इस बात को लेकर है कि मामले पर केंद्र की मोदी सरकार के रुख का इंतजार किया जाए। इन नेताओं का यहां तक कहना है कि यदि केंद्र सरकार अपनी तरफ से कोई ठोस कदम नहीं उठाती है तो आखिरी विकल्प आंदोलन का ही होना चाहिए। इस बीच हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने इस बारे में पूछे जाने पर पर कहा कि उन्होंने अभी कोर्ट का फैसला नहीं पढ़ा है और इसे देखने के बाद ही कोई टिप्पणी करेंगे।

News Sabhar : नवभारत टाइम्स| Mar 17, 2015, 09.42PM IST



Sarkari Naukri Sarkari Naukri Damad India. Latest Upadted Indian Govt Jobs - http://sarkari-damad.blogspot.com Published at http://sarkari-damad.blogspot.com (Click on the Labels below for more similar Jobs)

No comments: